दिसंबर में चने की खेती: पैदावार बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव
चना, जिसे ग्राम भी कहा जाता है, भारत में रबी सीजन की एक प्रमुख फसल है। यह न केवल पोषण से भरपूर है, बल्कि किसानों के लिए आर्थिक रूप से भी फायदेमंद है। दिसंबर का महीना चने की खेती के लिए आदर्श समय है, क्योंकि इस समय मौसम अनुकूल रहता है। यदि किसान कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें, तो वे अपनी पैदावार को बढ़ा सकते हैं और बेहतर गुणवत्ता प्राप्त कर सकते हैं।
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चने की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
चना ठंडे और शुष्क जलवायु में अच्छी तरह से उगता है। इसे 20-25 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती है। दिसंबर के महीने में ठंडा मौसम और कम आर्द्रता चने की वृद्धि और फली बनने के लिए आदर्श परिस्थितियां प्रदान करता है।
भूमि का चयन और तैयारी
चना अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट या दोमट मिट्टी में बेहतरीन पैदावार देता है।
- मिट्टी की तैयारी: खेत को अच्छी तरह से जुताई करके भुरभुरा बना लें।
- पी.एच. स्तर: मिट्टी का पी.एच. स्तर 6-7 के बीच होना चाहिए।
- जैविक खाद का उपयोग: खेत में गोबर की खाद या वर्मी-कंपोस्ट का प्रयोग मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए करें।
बीज का चयन और बुवाई
- बीज की गुणवत्ता: उच्च गुणवत्ता वाले प्रमाणित बीजों का चयन करें, जैसे पूसा 1108, जी.सी. 2, और पूसा 547।
- बीज शोधन: बीजों को बोने से पहले फफूंदनाशक जैसे कार्बेन्डाजिम या थायरम के साथ शोधन करें। यह रोगों से बचाव करता है।
- बीज दर: प्रति हेक्टेयर 80-100 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
- बुवाई का समय: दिसंबर की शुरुआत से मध्य तक बुवाई करना सबसे अच्छा होता है।
- बुवाई की गहराई: बीजों को 5-6 सेंटीमीटर गहराई पर बोएं।
उर्वरक प्रबंधन
- फॉस्फोरस और पोटाश: चने की जड़ों में नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया होते हैं, इसलिए नाइट्रोजन की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती।
- प्रति हेक्टेयर 20-25 किलोग्राम फॉस्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश का प्रयोग करें।
- साल्फर और जिंक: मिट्टी में इन पोषक तत्वों की कमी होने पर उचित मात्रा में प्रयोग करें।
- जैव उर्वरक: राइजोबियम कल्चर और पी.एस.बी. कल्चर का इस्तेमाल फसल की वृद्धि और उपज को बढ़ावा देता है।
सिंचाई और जल प्रबंधन
- चने की फसल को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है।
- बुवाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें।
- फूल और फली बनने के समय सिंचाई करें, लेकिन जलभराव से बचें।
- फसल कटाई से 15 दिन पहले सिंचाई बंद कर दें।
फसल सुरक्षा और रोग नियंत्रण
चना फसल पर अक्सर कीट और बीमारियों का प्रभाव पड़ता है।
कीट नियंत्रण:
- सफेद मक्खी: यह पत्तियों को नुकसान पहुंचाती है। इसे रोकने के लिए नीम का तेल छिड़कें।
- कटवर्म: इसकी रोकथाम के लिए क्लोरोपायरीफॉस का उपयोग करें।
रोग नियंत्रण:
- झुलसा रोग: यह पत्तियों को सुखा देता है। बीज उपचार और फफूंदनाशक का छिड़काव करें।
- उखटा रोग: यह जड़ों पर असर डालता है। खेत में जल निकासी सुनिश्चित करें।
फसल का रख-रखाव
- निराई-गुड़ाई: पहली निराई 25-30 दिन और दूसरी 45-50 दिन बाद करें।
- मल्चिंग: खेत में नमी बनाए रखने और खरपतवार को रोकने के लिए मल्चिंग करें।
- फसल निरीक्षण: समय-समय पर फसल का निरीक्षण करें और किसी भी समस्या का तुरंत समाधान करें।
चने की कटाई
- चने की फसल तब तैयार होती है जब पौधे की पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं और फली पूरी तरह सूख जाती है।
- कटाई के बाद फसल को 2-3 दिन तक धूप में सुखाएं।
उच्च उत्पादन के लिए सुझाव
- प्रमाणित और उच्च गुणवत्ता वाले बीज का चयन करें।
- जैविक खाद और जैव उर्वरकों का प्रयोग बढ़ाएं।
- जल प्रबंधन पर ध्यान दें और जलभराव से बचें।
- रोग और कीट नियंत्रण के लिए जैविक उपाय अपनाएं।
- फसल चक्र को अपनाएं और एक ही खेत में बार-बार चना न उगाएं।
निष्कर्ष
दिसंबर में चने की खेती सही तरीके से की जाए तो किसानों को उच्च पैदावार के साथ-साथ बेहतर गुणवत्ता की फसल मिल सकती है। उन्नत कृषि तकनीकों और आधुनिक साधनों का उपयोग करते हुए किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं। चने की खेती में ध्यान और मेहनत से किसान न केवल अपनी फसल का उत्पादन बढ़ा सकते हैं, बल्कि देश की कृषि अर्थव्यवस्था में भी योगदान कर सकते हैं।
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