मानसून के आगमन के साथ सब्जी की खेती करने वाले किसानों को फफूंद और जीवाणु जनित बीमारियों से फसलों को होने वाले नुकसान का खतरा बढ़ जाता है। विशेषज्ञ किसानों से समय रहते फसल सुरक्षा के उपाय अपनाने की अपील कर रहे हैं ताकि टमाटर, भिंडी, करेला, तोरई, बैंगन, लोबिया और परवल जैसी फसलें सुरक्षित रह सकें, जो बारिश के मौसम में अधिक संवेदनशील होती हैं।
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कृषि विशेषज्ञों के अनुसार डैंपिंग-ऑफ, लीफ ब्लाइट, मोज़ेक और चारकोल रॉट जैसी बीमारियाँ नमी वाली परिस्थितियों में तेजी से फैलती हैं और किसानों को भारी नुकसान पहुँचा सकती हैं। इनसे बचाव के लिए विशेषज्ञ खेत की सफाई, बेहतर जल निकासी व्यवस्था और प्रमाणित बीजों के प्रयोग पर जोर दे रहे हैं।
किसानों के लिए विशेषज्ञ परामर्श
सरकारी कृषि केंद्र शिवगढ़, रायबरेली के प्रभारी शिव शंकर वर्मा ने किसानों को बताया कि पहला कदम केवल स्वस्थ और प्रमाणित बीजों का उपयोग करना है। उन्होंने कहा, “किसानों को चाहिए कि अपने खेत को हमेशा साफ रखें और खरपतवार या कचरे से मुक्त रखें। खेत में पानी का ठहराव बिल्कुल न होने दें और उचित जल निकासी की व्यवस्था करें।”
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय से बी.एससी. कृषि स्नातक वर्मा ने आगे बताया कि जलभराव की स्थिति में कई मिट्टी जनित बीमारियाँ फैलती हैं। “जड़ गलन, तना गलन और पत्तों पर धब्बों जैसी बीमारियों से फसल का नुकसान तेजी से बढ़ता है, यदि समय रहते बचाव न किया जाए।”
मिट्टी उपचार का महत्व
विशेषज्ञों ने किसानों को मिट्टी की सेहत बेहतर बनाने पर जोर दिया है, ताकि बीमारियों से प्रतिरोधक क्षमता बढ़े। इसके लिए प्रति हेक्टेयर 100 किलो नीमखली का प्रयोग करने की सलाह दी गई है। साथ ही कैप्टान जैसे फफूंदनाशक दवाओं का नियमित अंतराल पर उपयोग भी प्रभावी माना गया है।
जहाँ मिट्टी जनित संक्रमण दिखे, वहाँ किसानों को प्रति हेक्टेयर 5–10 किलो ट्राइकोडर्मा मिलाने की सलाह दी जाती है। यह जैव एजेंट हानिकारक फफूंद को कम करता है और पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है।
डैंपिंग-ऑफ या लीफ ब्लाइट जैसी बीमारियों के लक्षण दिखने पर कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव हर 12 दिन में करने की सिफारिश की गई है। यह उपाय फफूंद संक्रमण को रोकने और फसलों को स्वस्थ रखने में सहायक है।
सुरक्षा के लिए छिड़काव कार्यक्रम
जीवाणु जनित संक्रमण जैसे ब्लाइट के लिए स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 100 मि.ग्रा. प्रति लीटर पानी के छिड़काव की सलाह दी गयी है जबकि एनिविरल लाइसिंग आजीवन की संभावना केलिएत दी गयी है। वायरस द्वारा संक्रमित पौधों को उखाड़ कर नष्ट करने की भी अपॉयल की गयी है, ताकि संक्रमित पौधों के विलायक परिचालन को रोका जा सके।
वायरस जनित बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए नियमित अंतराल पर डाइमिथोएट का छिड़काव करने पर जोर दिया गया है। इससे कीट वाहकों द्वारा संक्रमण फैलने का खतरा कम होता है और स्वस्थ फसलें सुरक्षित रहती हैं।
बेहतर उपज सुनिश्चित करना
कृषि अधिकारियों का कहना है कि समय पर रोकथाम के उपाय अपनाने से बारिश के मौसम में जोखिम को कम किया जा सकता है और किसानों को आर्थिक नुकसान से बचाया जा सकता है। खेतों की नियमित निगरानी, स्वच्छता बनाए रखना और सुझाए गए मिट्टी व फसल प्रबंधन तकनीकों को अपनाना स्वस्थ उपज के लिए आवश्यक है।
किसानों को कृषक विज्ञान केंद्रों और स्थानीय कृषि विस्तार अधिकारियों से लगातार संपर्क बनाए रखने की भी सलाह दी जा रही है, ताकि उन्हें नवीनतम जानकारी और समाधान मिल सकें।
जैसे-जैसे बारिश का मौसम आगे बढ़ रहा है, किसानों में जागरूकता फैलाना आवश्यक है ताकि सब्जी फसलें गंभीर बीमारियों से बची रहें और उनकी पैदावार तथा आय सुरक्षित रहे।
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