खाद्य सर्प्लस में परिवर्तन
भारतीय कृषि ने अनेक चुनौतियों का सामना करते हुए एक अद्भुत उपलब्धि प्राप्त की है, जिसमें खाद्य अभाव से खाद्य आधिक्य की ओर बदलाव हुआ है। फूड और श्रम की कमी, मानसून पर निर्भरता, बढ़ती इनपुट लागत जैसी अनेक चुनौतियों के बावजूद, भारतीय किसानों ने साहस और अनुकूलन का प्रदर्शन किया है, जिसे सरकार की विभिन्न पहलों और नीतियों ने समर्थन किया है ।
1947 में आरंभिक रूप से शुरू की गई “अधिक खाद्य उत्पादन’’ अभियान ने कृषि की वैज्ञानिक और व्यवस्थित दृष्टिकोण की ओर मार्गदर्शन किया। स्वतंत्र भारत में कृषि के विकास को प्रोत्साहित करने और किसानों को सशक्त बनाने के लक्ष्य के साथ-साथ कई भारतीय नेताओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
तथापि, आगे देखते हुए, 2050 तक जनसंख्या में अनुमानित वृद्धि के साथ-साथ, अब भी महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना होगा ।
1950/51 में खाद्य अनाज उत्पादन लगभग 51 मिलियन टन था, जो 2022 में 314 मिलियन टन से अधिक हो गया है| देश दुनिया में दूध, दाल, जूट, चीनी, बाजरा और चावल, गेहूं, कपास, फल और सब्जियों का सबसे बड़ा उत्पादक है ।
भारत की जनसंख्या 2050 तक 160 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है । उसके संबंध में, खाद्य अनाज उत्पादन को भी बढ़ाने की आवश्यकता है । यह लगता है कि भारतीय किसान चुनौतियों को स्वीकार करने और बढ़ती मांग और लघुत्तम निर्यात को पूरा करने के लिए ही नहीं अपितु भारत को मुख्य वैश्विक कृषि सुपर पावर में परिवर्तित करने के लिए तैयार हैं ।
इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि जो भारतीय किसान इस घातंकीय दर से बढ़ती मांग को लगातार पूरा कर रहे हैं, उनका सम्मान किया जाता है और उन्हें प्यार से अन्नदाता कहा जाता है।
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