हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि में निजी क्षेत्र की भागीदारी का समर्थन करते हुए कहा कि,”आज तक, ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र ने कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में योगदान दिया है। अब समय आ गया है कि इसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़े।”
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यह कहते हुए कि कृषि क्षेत्र को “प्रसंस्कृत खाद्य के लिए एक वैश्विक बाजार” का विस्तार करने का समय है, उनका कहना था कि भारत को फसल कटाई के बाद की क्रांति या खाद्य प्रसंस्करण क्रांति और 21 वीं सदी में मूल्यवर्धन की आवश्यकता है।
वे प्रसंस्कृत खाद्य के बारे में ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि, “भारत को फसल कटाई के बाद की क्रांति या खाद्य प्रसंस्करण क्रांति और 21 वीं सदी में मूल्यवर्धन की आवश्यकता है।”
“आज, यह उस समय की आवश्यकता है जब देश में किसान की उपज को बाजार में अधिक से अधिक विकल्प मिलते हैं।” उन्होंने कृषि क्षेत्र को वैश्विक बाजार में बढ़ाने का विस्तार करने की बात कही और प्रसंस्कृत भोजन के लिए किसानों के उत्पादन का बढ़ावा बताया।
प्रधान मंत्री के कथानुसार,“ २१ वीं सदी के भारत को कृषि उत्पादन बढ़ाने के बीच फसल के बाद या खाद्य प्रसंस्करण क्रांति और मूल्य संवर्धन की आवश्यकता है। यदि २ -३ दशक पहले किया गया होता तो यह देश के लिए अच्छा होता।’’
कृषि क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी का समर्थन करते हुए, प्रधान मंत्री ने कहा, “आज तक, ज्यादातर सार्वजनिक क्षेत्र ने कृषि क्षेत्र में अनुसंधान और विकास में योगदान दिया है। अब इसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ाने का समय आ गया है।”
उन्होंने यह भी कहा कि भारत में लंबे समय से एक या दूसरे रूप में अनुबंध खेती का चलन है। उन्होंने कहा, ”लेकिन इसका मकसद सिर्फ कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को व्यवसाय बनाना नहीं होना चाहिए, बल्कि उस जमीन के प्रति भी जिम्मेदारी निभानी होगी, जिस पर वह प्रैक्टिस करता है। ”
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