आंध्र प्रदेश के इस किसानों की संघर्ष की कहानी पढ़ना निश्चित रूप से आपको प्रेरित करेगा। विपरीत परिस्थितियों में भी, किसान अपना रास्ता खोजते हैं और प्रगति दिखाते हैं। नलगोंडा जिले के इदुलुरू गांव के नारायण रेड्डी ने प्रतिकूल परिस्थितियों से लड़ते हुए कृषि में एक बड़ी छलांग लगाई है। अब यह अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन रहा है।
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नारायण रेड्डी ने आम और साइट्रस की खेती में खुद की पहचान बनायीं है । आज भी वो भारी मुनाफा कमा रहे है। वह आम और खट्टे फल और दूध की बिक्री से प्रति वर्ष लगभग 28 लाख रुपये कमाते हैं।
आंध्र प्रदेश का नलगोंडा जिला तीव्र बारिश के चपेट में आता है। नारायण रेड्डी के खेत को भी इस बारिश का झटका बैठा। इस जिले में सूखा और फसल खराब होना ये आम बात हो गयी है। गरीबी यहाँ के किसानों का पीछा कभी नहीं छोड़ती। पत्थर की भूमि, मवेशियों, चारे की कमी वजहसे किसानों को बहोत संघर्ष करना पड़ता है। परंतु इस सब प्रतिकूल स्तिथियो पर मात करके नारायण रेड्डी ने गरीबी के मुक्ति का मार्ग निकला।
नारायण रेड्डी को ये समझ में आ गया था की गरीबी से बाहर निकलने के लिए पारम्परिक खेती को छोड़ना पड़ेगा। इसीलिये उन्होंने कुछ पैसे जोड़कर नई जमीन खरीद ली। उन्होंने कृषि में सुधार के लिए जल और मृदा संरक्षण पर जोर दिया। पहाड़ी इलाका होने के वजहसे उन्होंने पानी के सरक्षण के लिए कुछ उपाय किये। खेतों के किनारे पानी जमा करने की व्यवस्था की।
इसका लाभ यह हुआ की खेत में पानी की मात्रा बढ़ गयी और इसकी वजहसे मिट्टीको आवश्यक नमी मिल गयी। उन्होंने उस खेत में आम और साइट्रस लगाए। जानवरों से उसकी सुरक्षा के लिए और नजदीक के तालाबों और आस-पास के कुओं की मरम्मत की। आगे की सिंचाई के लिए नए बोरवेल खोदे लिए। खेती के ऊपर ध्यान देने के लिए अपने खेत में ही घर बना लिया।
वैज्ञानिक तरीके से खेती करने का उन्हें ये फायदा हुआ की उनकी वार्षिक आय लगभग ३० लाख हो गयी। खेती में काम करते समय आधुनिक तकनीक का उपयोग किया गया इसके के लिए उन्होंने ड्रिप सिंचाई का उपयोग किया। जमीन को समतोल बनाके आम और साइट्रस के पौधे लगाए। पहाड़ी इलाके के कारण इस काम में बहुत दिक्कते आयी लेकिन इसके बिना कृषि सफल नहीं होगी। पानी की बर्बादी से बचने के लिए ड्रिप सिंचाई का उपयोग किया गया।
उन्होंने आम और साइट्रस के पेड़ों को आवश्यक पानी मिलने के लिए झील खोदी। उसमे उन्होंने मत्स्य पालन करना सुरु किया २ हेक्टर के क्षेत्र में फसलो को आवश्क्य पानी मिलाने लगा। इंटीग्रेटेड प्लांट न्यूट्रिएंट्स सिस्टम (IPNS) के तहत, इन पौधों को खाद, दवाइयां, हरी खाद और वर्मीकम्पोस्ट दी गई। नारायण रेड्डी ने तब बाजार की मांग के अनुसार फसलों और फलों की खेती पर ध्यान देना शुरू किया।
पांच हजार लीटर दूध की बिक्री
आम और साइट्रस के खेती के आलावा भी उन्होंने पशुसंवर्धन पर भी ध्यान दिया।उनके पास खेती की कोई कमी नहीं थी इसीलिए उन्होंने पशुपालन का व्यवसाय शुरू किया। उन्हें ज्यादा उपज देने वाली भैंस और गायों के पालन करने से लाभ हुआ । नारायण रेड्डी को तीन साल पुराने आम के पेड़ों से प्रति हेक्टेयर 5 टन आम मिलता है। तो, साइट्रस की उपज प्रति हेक्टेयर सात टन है। नारायण रेड्डी ने एक बड़ी गौशाला स्थापित की है और साढ़े पांच हजार लीटर दूध बेचते हैं।
उनको सबसे ज्यादा आय दूध के व्यापार से मिलती है। उनके राशि से लगभग ४३ प्रतिशत राशि दूध के व्यापर से मिलती है। बागों (आम और साइट्रस) की पैदावार 30 फीसदी तक होती है। और अन्य फसलों से उन्हें १७ फीसदी कमाई होती है।वह अब वर्मीकम्पोस्ट बनाकर भी बेचते है। उनको को आम के बागों से सालाना 3.40 लाख रुपये, साइट्रस बिक्री से 5 लाख रुपये, अनाज की बिक्री से 4.80 लाख रुपये, पोल्ट्री फार्मिंग से 50,000 रुपये, दूध की बिक्री से 12 लाख रुपये और 2 लाख रुपये से मिलते हैं। नारायण रेड्डी अपने 44 एकड़ के खेत से लगभग 28 लाख रुपये कमाते हैं।
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