मैसूरु और कर्नाटक में होगा जड़ और कंद मेला

मैसूरु और कर्नाटक में होगा जड़ और कंद मेला

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सूत्रों के अनुसार खाद्य सुरक्षा सूचना नेटवर्क (FSIN), खाद्य सुरक्षा और विकास संस्थानों, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों और यूरोपीय संघ की एक पहल द्वारा जारी एक रिपोर्ट से प्राप्त जानकारी में पाया गया ५३ देशों में ११३ मिलियन लोगों को २०१८ में गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करना पड़ा है। 

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खाद्य सुरक्षा में जड़ें और फसलों के कंद मुख्या भूमिका निभाते है। इसीलिए कृषि उत्पादतकता को बढ़ाने और भूख और गरीबी को समाप्त करने के लिए खाद्य सुरक्षा में फसलों की जड़ें और कंद पर ध्यान केंद्रित करना एक अच्छा उपाय हो सकता है।

और इसके माध्यम से भूख और गरीबी को समाप्त करने में भी सहायता हो सकती है।  इस माध्यम से राष्ट्र की आर्थिक वृद्धि में सुधार करने में भी मदद मिलेगी और पर्यावरणीय स्थिरता में भी वृद्धि होगी। कंद पोषण और जलवायु परिवर्तन में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

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इसीलिए  रोटरी क्लब ऑफ मैसूर (पश्चिम) के सहयोग से मैसूरु में एक कंद मेला का आयोजन करना है। इस मेले का मुख्य हेतु यही है की समुदायों को संवेदनशील बनाना और अधिक मूल्य संवर्धन की संभावनाओं की खोज करना और इस प्रकार उनकी खेती को प्रोत्साहित करना है।

कंद मेले का उद्घाटन मैसूरु के टिट्युलर किंग “यदुवीर कृष्णदत्त चामराजा वाडियार”, आरटीएन द्वारा किया जाएगा। रोटरी क्लब ऑफ मैसूर वेस्ट के अध्यक्ष, राघवेंद्र प्रसाद, अध्यक्षता करेंगे, वायनाड में केदाराम कंद संरक्षण के एन एम शाजी मुख्य अतिथि होंगे।

आदिवासियों द्वारा गहरे जंगल से बरामद १२० दुर्लभ किस्मों के साथ “केदाराम कंद संरक्षण केंद्र” भी कंद प्रदर्शित करेगा। जेनु कुरुबा, बेट्टा कुरुबा, सोलीगा, इरुला, कुनबी जनजातियां जैसे विविध कंद इस मेले में प्रदर्शित किये जाएंगे।२५ से अधिक समूह प्रदर्शन और बिक्री के लिए विभिन्न प्रकार के कंद, खाद्य पदार्थों और मूल्य वर्धित उत्पादों को प्रदर्शित करेंगे।

दुर्लभ जड़ें और कंद जैसे आलू, बैंगनी यम, काली हल्दी, और तीर जड़ बीज सामग्री बिक्री के लिए उपलब्ध होंगे।  कुकिंग विद टयूबर्स , सबसे स्वास्थ्यप्रद और स्वादिष्ट जड़ों और कंदों को पकाना सिखने के लिए एक खाना पकाने की प्रतियोगिता भी 7 फरवरी, रविवार को आयोजित की गई है। 

ताकि युवा पीढ़ी जो पारंपरिक खाद्य पदार्थों और कृषि के साथ संपर्क खो चुके हैं, उनको  इसके पोषण मूल्य का परिचय दे सकें। इस तरह के मेले निश्चित रूप से खोए हुए स्वदेशी ज्ञान को पुनर्जीवित करने में बहुत सहयता मिलने वाली है।

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