हिमाचल प्रदेश के मध्य पहाड़ी क्षेत्रों में प्राकृतिक खेती धीरे-धीरे अपनी पकड़ मजबूत कर रही है। लगभग 1.65 लाख किसान अब 1,936 हेक्टेयर क्षेत्र में रसायनों का उपयोग किए बिना फसल उगा रहे हैं। सब्जियों में शिमला मिर्च, जिसे स्वीट पेपर भी कहा जाता है, अपनी बढ़ती मांग और लाभप्रदता के कारण किसानों की पसंदीदा फसल बन रही है।
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कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदेश में शिमला मिर्च की खेती का रकबा हर साल 6 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। वहीं सोलन जिला 7.9 प्रतिशत की वृद्धि दर के साथ सबसे आगे है। अकेले सोलन में 1,217 हेक्टेयर क्षेत्र से 34,850 टन शिमला मिर्च का उत्पादन होता है, जो राज्य की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान दे रहा है। हिमाचल में उत्पादन 10.3 प्रतिशत और सोलन में 15 प्रतिशत की वार्षिक दर से बढ़ रहा है। उत्पादकता में भी लगातार बढ़ोतरी हो रही है। किसान अब संरक्षित खेती (protected cultivation) की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे उन्हें नियंत्रित परिस्थितियों में बेहतर उत्पादन और सालभर अधिक आय मिल रही है।
संदेह से सफलता तक
शुरुआत में किसानों को प्राकृतिक खेती पर संदेह था। वे कीट नियंत्रण को लेकर चिंतित रहते थे और कम उपज का डर उन्हें सताता था। इस कारण प्राकृतिक खेती पहले केवल रसोई बगीचों तक ही सीमित रही। लेकिन कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) सोलन और कृषि विभाग द्वारा एटीएमए कार्यक्रम के तहत दी गई सहायता से अब किसान शिमला मिर्च, टमाटर, फ्रेंच बीन्स और खीरे जैसी उच्च मूल्य वाली फसलें प्राकृतिक तरीकों से उगा रहे हैं।
शिमला मिर्च की खेती की सबसे बड़ी चुनौती कीट आक्रमण है, खासकर थ्रिप्स और माइट्स। ये कीट फूल, पत्ते, तना और फल को नुकसान पहुंचाते हैं और अक्सर टमाटर स्पॉटेड विल्ट वायरस (TSWV) भी फैलाते हैं। हाल ही में दयारग बुखार गांव में थ्रिप्स का गंभीर प्रकोप देखा गया, जहां पारंपरिक पॉलीहाउस में उगाई गई रंगीन शिमला मिर्च की फसल को भारी नुकसान हुआ।
कृषि विज्ञान केंद्र सोलन की वैज्ञानिक टीम, अमित विक्रम के नेतृत्व में, किसान राहुल शर्मा के पॉलीहाउस में फूलों पर थ्रिप्स का व्यापक हमला दर्ज किया। लाखों रुपये कीटनाशकों पर खर्च करने के बावजूद, शर्मा को विल्ट रोग की समस्या का सामना करना पड़ा और लगभग 4 लाख रुपये के नुकसान की आशंका जताई, जिससे रासायनिक खेती को लेकर चिंता और बढ़ गई है।
प्राकृतिक खेती की सफलता की कहानी
इसी गांव के एक अन्य किसान शैलेन्द्र शर्मा, जो पिछले सात वर्षों से प्राकृतिक खेती कर रहे हैं, का पॉलीहाउस बिल्कुल अलग तस्वीर पेश करता है। उनके शिमला मिर्च के पौधे स्वस्थ हैं और थ्रिप्स का प्रकोप नगण्य है—जहां पारंपरिक खेती में एक फूल पर 40–50 थ्रिप्स पाए गए, वहीं प्राकृतिक खेती में यह संख्या केवल 4–5 रही।
शैलेन्द्र जीवरामृत, घनजीवरामृत, अग्नास्त्र, ब्रह्मास्त्र, दशपर्णि अर्क और सप्तधान्य अंकुर अर्क जैसे जैविक घोलों का नियमित उपयोग करते हैं। इन्हें वे फोलियर स्प्रे और ड्रिप सिंचाई के माध्यम से व्यवस्थित तरीके से अपनाते हैं। उनकी समन्वित खेती पद्धति, जिसमें मल्चिंग और मिश्रित फसल प्रणाली भी शामिल है, उत्पादन लागत को कम करती है और बेहतर उपज व उच्च गुणवत्ता वाले फल सुनिश्चित करती है।
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