कृषि मंत्रालय ने गेहूं की फसल की अच्छी पैदावार के लिए एक एडवाइजरी जारी की है। इसमें मौसम विभाग के पूर्वानुमान को ध्यान में रखते हुए पाले बचाव के उपायों का सुझाव दिया गया है। साथ ही, गेहूं में होने वाले पीला रतुआ रोग से बचाव के लिए भी एडवाइजरी जारी की गई है।
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शीतलहर के बीच गेहूं उत्पादन में वृद्धि और फसल की देखभाल के लिए कृषि मंत्रालय ने एडवाइजरी जारी की है। मंत्रालय ने गेहूं की सुखद वृद्धि के लिए किसानों को सलाह दी है कि बुआई के 40-45 दिन बाद तक नाइट्रोजन उर्वरक का सही मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।
कृषि मंत्रालय ने गेहूं की फसल के पहले सिंचाई के पूर्व खेत में यूरिया डालने की सुझाव दी है, साथ ही यह भी बताया गया है कि अगर किसान ने गेहूं की बुआई में देरी की है और इसके कारण खेत में संकरी और चौड़ी पत्तियों में खराबी दिखाई दे रही है, तो शाकनाशी का उपयोग करना चाहिए, जिससे फसल की बेहतर पैदावार होने में मदत होगी।
शाकनाशी सल्फोसल्फ्यूरॉन का करें छिड़काव:
सल्फोसल्फ्यूरॉन 75WG को लगभग 13.5 ग्राम प्रति एकड़ या सल्फोसल्फ्यूरॉन प्लस मेट्सल्फ्यूरॉन 16 ग्राम को 120-150 लीटर पानी में मिला के प्रति एकड़ में छिड़काव करने की है । एक और संभावना है कि पहली सिंचाई से पहले या सिंचाई के 10-15 दिन बाद इसे स्प्रे किया जा सकता है।
पीला रतुआ रोग (yellow Rust in wheat) से बचने का क्या है तरीका:
कृषि मंत्रालय ने पीला रतुआ रोग से फसल को सुरक्षित रखने के लिए किसानों को सुझाव दिया है। उन्हें सलाह दी गई है कि जब भी पीला रतुआ रोग के संकेत मिलें, वे नियमित अंतराल पर अपनी फसलों की निगरानी करें। यदि किसान किसी पौधे को संक्रमित पाते हैं, तो उसे तुरंत हटा देना चाहिए, जिससे रोग अन्य पौधों में फैलने से बचाया जा सके।
हल्की सिंचाई करने से पाले से फसलों को बचा सकते है:
किसानों को अपनी फसलों को पाले से बचाने के लिए, मौसम विभाग ने पूर्वोत्तर और मध्य राज्यों में बारिश की भविष्यवाणी की है। इसके साथ ही, आने वाले सप्ताह में तापमान की गिरावट की उम्मीद है। इस समय में किसानों को अपने फसलों को पाले से बचाने के लिए हल्की सिंचाई करने की सलाह दी गई है।
इस साल पिछले वर्ष की तुलना मेंअधिक बुवाई हुए है:
इस वर्ष, गेहूं की बुवाई में पिछले साल की तुलना में थोड़ी वृद्धि हुई है, कृषि मंत्रालय ने बताया है। 2023-24 में कुल 336.96 हेक्टेयर में गेहूं की बुवाई हुई है, जबकि पिछले साल यह संख्या 335.67 हेक्टेयर थी। इसमें उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और पंजाब में सबसे अधिक बुवाई हुई है।
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