पशुओं की आकस्मिक मृत्यु हो जाने पर सरकार देगी मुआवजा, जानें क्या है प्रक्रिया।

पशुओं की आकस्मिक मृत्यु हो जाने पर सरकार देगी मुआवजा, जानें क्या है प्रक्रिया।

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भारत में किसने की आय का स्त्रोत या तो खेती करने से है या फिर पशु पालकर ददोड़ बेचना या बैलों से खेत जोतकर खेती करवाना है। किसान के लिए पशु और फसल की असुरक्षा पर प्राकृतिक आपदा से फसल नुकसान की वजह से बर्बाद हो जाती है, उसी तरह पशु बीमार, दुर्घटना या मौसम के कारण अचानक मृत्यु हो जाती है।

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सरकार फसल नुकसान पर तो बीमा प्रदान करती है परन्तु पशुओं का बीमा करवाना किसान भूल जाते हैं और उन्हें नुकसान भी होता है। केंद्र सरकार ने इस बात को ध्यान में रखते हुए पशुधन बीमा योजना की शुरुवात की है। योजना का लाभ उन किसान भाइयों को मिलेगा जो पशु की मृत्यु हो जाने पर पंजीकृत करवा लें और नुकसान का अनुदान समय पर मिल जाने का लाभ प्रदान कर सकें।

पशुधन बीमा योजना का लाभ किसको प्राप्त होगा ?

सरकार पशुधन बीमा योजना के तहत किसानों को पशुओं के लिए ५० प्रतिशत तक बीमा में जमा होने के लिए अनुदान दे रही है। योजना के तहत दुधारू पशुओं का बीमा उनके बाजार मूल्य पर किया जाता है तथा योजना के अंतर्गत किसान दो पशुओं का बीमा बाजार मूल्य पर करवा सकते हैं तथा पशु की बीमा अवधि तीन साल के लिए पूर्ण होती है।

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पशुओं का बीमा करवाने के लिए कैसे करें आवेदन

  • जो किसान अपने पशुओं का बीमा करवाना चाहते हैं उन्हें पहले नजदीकी पशु अस्पताल में बीमा की जानकारी देना अनिवार्य होगा।
  • फिर अस्पताल से पशुचिकित्सक और बीमा एजेंट किसान के घर आकर पशु के स्वास्थ्य की जांच करके आपको जानकारी देंगे की आप बीमा के लिए पंजीकृत कर सकते है या नहीं।
  • पूर्ण जांच होने के बाद पशु चिकित्सक स्वास्थ्य प्रमाण पत्र जारी करेगा।
  • पूरी जांच होने के बाद बीमा एजेंट पशु के कान में टैग लगाते जिससे यह पता चलेगा की पशु का बीमा हुआ है की नहीं।
  • फिर किसान और पशु की साथ में फोटो ली जाएगी।

बीमा पालिसी कैसे जारी करी जाती है ?

  • यदि पशु खो जाता है तो बीमा कंपनी को इसके लिए सूचित करना होगा।
  • यदि टैग गिर जाता है तो भी बीमा कंपनी को सूचित कर नया टैग लगवाना अनिवार्य होगा।
  • भीमाशाह कार्ड होने पर ५ पशुओं का बीमा एक साथ किया जा सकता है।

प्रत्येक राज्य में अलग अलग होगी प्रीमियम राशि

प्रीमियम राशि प्रत्येक राज्य में अलग अलग होती है तथा कुछ राज्यों में केंद्र एवं राज्य सरकार दोनों मिलकर इस राशि का भुगतान करती है।

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